एक नट की मार्मिक कहानी


सत्य घटना पर आधारित आइए आप सभी को एक कहानी सुनाते है जो आपका ज्ञानवर्धन भी करेगी -:

एक गांव में एक नट और उसका बेटा रहता था, अरे नट नही समझे वही जो रस्सी पर चलकर अपना खेल दिखाता है, क्योकि पढ़ाई लिखाई की नही कभी तो इसी से अपना काम चलाता था, उसके पिता ने उसे रस्सी पर चलना सिखाया तो वो अपने आपको सबसे ऊपर चलने वाला समझने लगा, लोगो से बोलता फिरता की मैं सबसे बड़ा हूँ सिर्फ मेरा खेल देखो, बत्तमीज होने के कारण धीरे धीरे उसका खेल साल में 1 या बमुश्किल लोग 2 बार ही देखते थे, लेकिन नट होने के कारण वो अपने आपको हमेशा ऊपर ही समझता रहा , जब कोई काम धंधा नही मिला तो उसने लोगो को परेशान करना चालू कर दिया, लोगो से बोलता फिरता कि तुझे काम नही आता - तुझे भी काम नही आता- तू भांड है(क्षमा करें ये उसके शब्द है) तू नचीनियो का सरदार है, तुझे गाना नही आता- तुझे मायरा करना नही आता, यही सब बकता रहता था, कुछ लोग उससे ये खेल देखने भी आ जाते और उसे लगता कि ये भीड़ मेरे लिए जमा हुई है,जबकि वो उस पर हसने की लिए जमा होती थी, जैसे बन्दर का खेल देखने लोग जमा होते है, अन्त में क्या हुआ एक दिन उस नट का पाला एक वकील साहब से पड़ गया, उसे पता लगा वो जन्म से ब्राह्मण है तो उसने प्रश्न किया कि बताओ कितने शास्त्र पढ़े है, रस्सी पर कभी चले हो, नाचना आता है, उन्होंने कहा नही, फिर उसने कहा कि तुम्हे कुछ नही आता, जब वकील साहब ने पूछा कि बताओ संविधान में कितने आर्टिकल है, राष्ट्रपति के क्या क्या अधिकार क्षेत्र है, तो वो चुप हो गया,वो जानता था कि वो रस्सी पर जरूर अच्छा चल सकता है लेकिन किताबी अध्ययन उसके माता-पिता ने उसे कभी नही दिया, लेकिन वो गली मोहहले जा कर अपने चेले चपाटों से यही बोलता रहा कि मैंने वकील को हरा दिया, मैंने वकील को हरा दिया ।।

आप सभी से अनुरोध है कि अपने बच्चे को अच्छे संस्कार दें, पढ़ाये लिखाये, नट ना बनाये वरना वो पूरी जिंदगी खाली बैठ कर लोगो को परेशान ही करता रहेगा, फिर किसी दिन किसी ने ज्यादा कस दिया तो खराब 🙏🙏

फिलहाल उसकी मानसिक स्थिति ठीक नही है तो बाबा से प्रार्थना कीजिये कि वो ठीक हो जाये,

नोट- कोई इधर उधर की बातें नही सोचेगा, ये सत्य घटना पर आधारित है नट आज कल मुम्बई शहर में रहता है, नट नही जानता कि ज्यादा कसने पर वो खराब हो जाता है फिर उसे नाली में फेंकना ही पड़ता है


✍️एडमिन- अधिवक्ता रवि शर्मा

सम्पादक - श्री श्याम पुकार पत्रिका